तपती धूप में भूखों के लिए , बीज जो बोता है..
दुख ही दुःख हैं घर में उसके सुख वो तुमको देता है..
देश का अन्नदाता कहते .... देश उसका कर्जदार है....
फिर क्यूँ ये धरती देश की उसके खून से शर्मसार है......
छोटा सा परिवार उसका मवेशियों का भी निवास है....
कच्चा सा मकान खड़ा , धोती तन की शान है....
छाले पड़े पैरों में , देश की वह जान है .......
फिर क्यूँ ये धरती देश की , उसके लिए शमशान है ......
धरती का सच्चा लाल , कितने दुख सह जाता है .....
जीवन देता वह सबको , घर में अन्न भी ना पाता है ....
सेठ साहूकारों से जिसकी बड़ी उधारी है .....
फिर क्यूँ ये धरती देश की उसके खून से हारी है.....
अन्न उगाकर भी बच्चों को अन्न के लिए तरसाता है....
वसन नही दे पाता अधनंगे बच्चों को रोज सुलाता है ......
मिटटी से सोना उपजाता देश को धन दिलाता है......
फिर क्यूँ ये देश उसके ही खून में रंग जाता है.......
@अpoorva