Wednesday, 29 May 2019

खुद की खोज में निकल कहीं


तो क्या हुआ जो मौन हूँ,
मैं ढूंढ रही मैं कौन हूँ..
वर्तमान के अन्धकार में,
धधकती हुई मिशाल हूँ..

तो क्या हुआ जो गिर रही, 
हर प्रहार पर सिहर रही,
काल के आघात से,
धिक्कार को है सह रही..

ये समय यदि प्रहार है,
मैं लहूलुहान वीरांगना सही ..
ये हार यदि कोई कांच है,
मैं पत्थर पर लिखी इबादत कहीं.. 
ये पराजित्ता यदि जलती लौ है,
मैं बुझी राख का अंगार सही..
ये विप्पतियाँ यदि समंदर है,
मैं जीत की प्रचंड लहर कहीं..

जो भभक उठी अंगार की लौ,
इस अन्धकार को ले जाएगी. 
मेरे वजूद की खामोशियाँ,
हद से ज्यादा शोर मचाएंगी..
ये अंत नहीं शुरुआत है,
ब्रमांड को निहार सही..
तू भी  ये जंग जीत लेगा,
खुद की खोज में निकल कहीं
खुद की खोज में निकल कहीं !!

Written by : APOORVA GUPTA
Picture Credit :  AAKRITI TAMRAKAR

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