इस मायूसी के मंजर से
एक और सड़क भी जाती है
ख्वाइशों की पटरी तक
बेखौफ तुझे ले जाती है
तू रख कर उम्मीदों की बोरी
बस सहज निरंतर चलते जाना
उस मार्ग को प्रसस्त करना
हर भाल तिलक करते जाना
ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ..........
तू कब तक महज रोयेगा
लिए ढाल हाथ मे सोएगा
छण भर भी रुका पथिक
तो साहस नितदिन खोएगा
गर घोर अंधेरा मिल जाये
जब पथ पर बाधा आजाएं
बांध कफन सर पर तू
शमशीर उठा लड़ते जाना
ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ............
धीरज रखना धरा की भांति
और पवन संग बहते जाना
राह न तकना रवि शशि की
हर पल परिश्रम बोते जाना
थामना मत साहस की धड़कन
इंक़लाब तू लिखते जाना
तू बांधना मत पैरों में बेड़ी
बस मशाल लिए चलते जाना
ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ...........
Apoorva Gupta
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