Sunday, 27 September 2020

ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ...........

 इस मायूसी के मंजर से

एक और सड़क भी जाती है 

ख्वाइशों की पटरी तक 

बेखौफ तुझे ले जाती है


तू रख कर उम्मीदों की बोरी

बस सहज निरंतर चलते जाना

उस मार्ग को प्रसस्त करना 

हर भाल तिलक करते जाना 


ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ..........


तू कब तक महज रोयेगा 

लिए ढाल हाथ मे सोएगा 

छण भर भी रुका पथिक

तो साहस नितदिन खोएगा


गर घोर अंधेरा मिल जाये 

जब पथ पर बाधा आजाएं

बांध कफन सर पर तू

शमशीर उठा लड़ते जाना 


ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ............


धीरज रखना धरा की भांति

और पवन संग बहते जाना 

राह न तकना रवि शशि की

हर पल परिश्रम बोते जाना 


थामना मत साहस की धड़कन 

इंक़लाब तू लिखते जाना

तू बांधना मत पैरों में बेड़ी

बस मशाल लिए चलते जाना 


ए वीर यूँ ही बढ़ते जाना ...........


Apoorva Gupta 




Saturday, 28 December 2019

इक मुसाफिर

ढलते हुए सूरज से कुछ
भरकर आँखों में आशायें
होता सदृढ़ हर भोर किरण संग
लिखने को अपनी गाथाएँ

उठा शस्त्र लेकर अरमान
चल पड़ा पथिक अपनी ही शान
मिलता न पथ पर कोई निशाँ
सह लेता वो हर एक अपमान

कहते निशाचर उसे सभी
ख़्वावों में था बस एक मुकाम
न सुध थी दिन की रात की
बढ़ते जाना उसका सिद्धान्त

चलता ख़ुद में तूफान लिए
जीतूंगा मैं, ये ठान लिए
हंसते मुसाफिर गिर गिर कर
वो सह लेता मुस्कान लिए

मिलता कभी जो फल उसे
ले लेते कर निर्बल उसे
कह देते उसे तू लायक नही
फिर आना, अभी वक़्त नही

जला मिशाल फिर अंगारों से
डरता नही वो धिक्कारों से
ख़्वावों को सरताज लिए
हारा नही ये जान प्रिये

फिर लौटूंगा सैलाब लेकर
अधूरे ख्वाब को आवाज देकर
विपदाओं से लड़ झगड़कर
उम्मीदों से भरा जोश लेकर

इस चकाचौन्ध दुनिया में
इक मुसाफिर को पहचान दिलाने।

@अpoorva

Wednesday, 29 May 2019

खुद की खोज में निकल कहीं


तो क्या हुआ जो मौन हूँ,
मैं ढूंढ रही मैं कौन हूँ..
वर्तमान के अन्धकार में,
धधकती हुई मिशाल हूँ..

तो क्या हुआ जो गिर रही, 
हर प्रहार पर सिहर रही,
काल के आघात से,
धिक्कार को है सह रही..

ये समय यदि प्रहार है,
मैं लहूलुहान वीरांगना सही ..
ये हार यदि कोई कांच है,
मैं पत्थर पर लिखी इबादत कहीं.. 
ये पराजित्ता यदि जलती लौ है,
मैं बुझी राख का अंगार सही..
ये विप्पतियाँ यदि समंदर है,
मैं जीत की प्रचंड लहर कहीं..

जो भभक उठी अंगार की लौ,
इस अन्धकार को ले जाएगी. 
मेरे वजूद की खामोशियाँ,
हद से ज्यादा शोर मचाएंगी..
ये अंत नहीं शुरुआत है,
ब्रमांड को निहार सही..
तू भी  ये जंग जीत लेगा,
खुद की खोज में निकल कहीं
खुद की खोज में निकल कहीं !!

Written by : APOORVA GUPTA
Picture Credit :  AAKRITI TAMRAKAR

Monday, 7 January 2019

तू किसी का गुलाम मत बनना


सुनो, तुम घबराना नहीं भ्रमित लोंगो से,
कोई भ्रम की दीवार तुम्हारी उड़ान से ऊंची नहीं |
ठहर मत जाना किसी ओस की  बूँद समान,
घडी की सुइयां तेरे लिए रुकेगी नहीं |
चाहे निकल पड़ें तेरे अपने तेरा इमान बेचने को,
तू अपने हौसलों को सदा सलाम करना,
ये दुनिया बाँधेगी तुझे जंजीरों में,
पर तू किसी का गुलाम मत बनना।

डरना मत जब अच्छाई को तेरी अंधकार निगल जाये,
चारों दिशाओं में अपना वर्चस्व न देख पाए
किस्मत की लकीरों में सवेरा भी है लिखा कहीं,
कहतें हैं उद्द्यमी को ये वक़्त डरा सका नहीं
चाहे मंजिल  पहले ही राहें ख़त्म हो जाएं
मन में अटूट विश्वास लिए तू खुद अपनी राह बुनना
विपत्तियां गले लगाएंगी
पर तू किसी का गुलाम मत बनना।

देखना मत इन काल्पनिक पिंजरों को
वक़्त के साथ उड़ना भी सीख जायेगा
तू खोना मत अपने अरमानो को
अच्छा वक़्त पूरी कायनात साथ लाएगा
चाहे सब यार बिछड़ जाएं
तू भरोसा रख उनका इंतज़ार करना
नीरसता तुझसे मिलने आएगी
पर तू उसका गुलाम मत बनना

Apoorva Gupta

Saturday, 5 May 2018

मुझमे अभी मैं बाकी हूँ


आधी चली है राह अभी है दूर अभी भी मंजिलें ....
आधे अधूरे ख्वाव की, यूँ डगमगाती कोशिशें ....
थोडा तराशा खुद को है , मुझमे मैं अभी बाकी हूँ ...
आधी जागी हूँ नींद से , आधा स्वप्न में बाकी हूँ ...

क्यों शोर में सन्नाटें हैं, क्यों उलझे हुए सब नातें हैं ...
लडखडाते क़दमों के सामने, क्यों हाथ अब थम जातें हैं ...
क्यों बहती हुई हवा का रुख , अब मैं मोड़ नही पाती हूँ ...

आधी लिखी है नज़्म अभी, आधा सा चुप रह जाती हूँ ...
क्यों हँसता हुआ कोई चेहरा भी , लाखों कहानियां कहता है ....
आधा सा सुकून दिखा दिन में , फिर आधा रात में रोता है ...
है स्याही मेरी बिखरी हुई , पर आधी बात कह पाती हूँ ..
आधी पहुंची हूँ जमाने तक , आधी कहानियों में बाकी हूँ ....

@poorva
-अपूर्वा गुप्ता

Wednesday, 20 December 2017

विपत्तियाँ ललकारती तू उनका अब संहार कर







ये पथ जो तूने चुन लिया, ना उससे अब इनकार कर |

विपत्तियाँ ललकारती, तू उनका अब संहार कर ||

भले अँधेरा ढंक रहा, तू खुद रवि सा जगमगा|
भले अकेला चल रहा, तू खुद को शूरवीर बना ||

बहुत पराश्रित बन लिया, तू स्वयं को अब आधार कर |
चुनौतियों से नजर मिला, और युद्ध का आगाज़ कर ||

तू हार से ना डगमगा, हौसले से सर उठा |
अनिश्चितता को भूल जा, तू कर्म को प्रधान बना ||

ना फल है तुझको मिल रहा, तो खुद को फिर से बीज कर|
जो भय है तुझको छल रहा, अब उसको दर किनार कर ||

जिद जोश जुनून जगा, तू खुद को अब पहचान जरा |
स्वयं मार्ग प्रशस्त  कर , तू खुद को यूँ मिशाल बना ||

विपत्ति का तू सर झुका, आराम को विराम कर |
सतत कदम बढाये जा, तू जीत का अब शंखनाद कर ||

~अपूर्वा गुप्ता


Monday, 10 July 2017

हैवानियत का एक नज़ारा ..



ऊँचे सपने आँखों में लिए चहकती-सी चिड़िया थी वो ...
पापा की परी बन घर आँगन महकाती थी वो ...
हजारों सपने आँखों में लिए, हर रोज उड़ान भरती थी वो ...
आज गहन सन्नाटों को फाड़ देती है उस अधूरे लक्ष्य की ललकार वो ...

दिन-रात जो सपने में रहती थी, आज अथाह दर्द में जीती है वो...
उस दरिंदे की हैवानियत ने छीन ली उसकी सूरत जो ....
पिछले छण की मुस्कुराहट को जिन्दगी भर को ढक दिया वो...
अम्ल की कुछ ही बूंदों ने पिघला दिए सपने व सूरत जो .....
आज गहन सन्नाटों को फाड़ देती है उस अधूरे लक्ष्य की ललकार वो ...

ना टूटती इस कदर सड़क पर इंसानियत कहीं मिल जाती तो ...
पूरे वदन को छल रही थी दरिंदगी की अहसानियत जो ...
टूट रही थी जिंदगियाँ व बिखरते लक्ष्य की जंजीरे जहाँ ...
मौन खड़े देख रहा था जमाने का काफिला वहाँ .....
और चीरते हुई निकल रही थी उस अधूरे लक्ष्य की ललकार वहाँ...

जिन्दगी भर उसके कर्मों को पहचान बनाकर घूमती है अब ..
हर सर्जरी झट से थाम देती है अधूरे सपनों की ललकार तब
जमाने के शोर से भी ऊँची थी लक्ष्य की उड़ाने उसकी ....
जमाने का साथ पा कर भी नही बदल सकती वो अब कहानी अपनी ...
असीम शोर में भी उसे सुनाई देती है उसे , उस अधूरे लक्ष्य की ललकार अपनी ....

@अpoorva

Thursday, 1 June 2017

हमारे देश का किसान

तपती धूप में भूखों के लिए , बीज जो बोता है..
दुख ही दुःख हैं घर में उसके सुख वो तुमको देता है..
देश का अन्नदाता कहते .... देश उसका कर्जदार है....
फिर क्यूँ ये धरती देश की उसके खून से शर्मसार है......

छोटा सा परिवार उसका मवेशियों का भी निवास है....
कच्चा सा मकान खड़ा , धोती तन की शान है....
छाले पड़े पैरों में , देश की वह जान है .......
फिर क्यूँ ये धरती देश की , उसके लिए शमशान है ......

धरती का सच्चा लाल , कितने दुख सह जाता है .....
जीवन देता वह सबको , घर में अन्न भी ना पाता है ....
सेठ साहूकारों से जिसकी बड़ी उधारी है .....
फिर क्यूँ ये धरती देश की उसके खून से हारी है.....

अन्न उगाकर भी बच्चों को अन्न के लिए तरसाता है....
वसन नही दे पाता अधनंगे बच्चों को रोज सुलाता है ......
मिटटी से सोना उपजाता देश को धन दिलाता है......
फिर क्यूँ ये देश उसके ही खून में रंग जाता है.......

@अpoorva 

Tuesday, 30 May 2017

पलकें उठाने दो ना मुझे ..

तेरा ही तो ख्वाव हूँ , अपनी वाहों में आने दो ना मुझे ....
तेरा ही तो अरमान हूँ , अपने आंगन में गुनगुनाने दो ना मुझे ..

बिना देखे मेरा नूर , कैसे निर्णय बना लिया ..
काबीलियत देखे बिना ही क्यूँ बेटी समझ नकार दिया .....
किसी आफताब का नूर हूँ मैं जहाँ में आने दो ना मुझे .....
बेटे से ज्यादा काबिल हूँ यह हुनर दिखाने दो ना मुझे ....

काफिला ज़माने का बेटे के फितूर में चल रहा .....
बेटी को कोख में फना कर खुद को भगवान समझ रहा .....
 
इस जहाँ में लड़की का वजूद बनाने दो ना मुझे .....
जन्म देकर काफिले का रुख मोडने दो ना मुझे ....

शक्ती हूँ में माँ दूर्गा सी , भूखों भी ना रोंउंगी ....
तेरे हर दुख में हर उम्र में , साथ हमेशा होऊँगी ....
तस्वीर हूँ तेरे बदलते नसीब की अस्तित्व लेने दो ना मुझे ..
 
तेरे सर का ताज बनूँगी अपनी कोख में पनपने दो ना मुझे .......

माँ लक्ष्मी का रूप हूँ मैं बरकत लेकर आऊँगी ...
 
भैया की किताबों से पढकर खेतों में हाथ बटाऊँगी .....
इनायत हूँ खुदा की दो घर आंगन महकाने दो ना मुझे ....
इस कायनात को निहारना चाहती हूँ पलके तो उठाने दो ना मुझे


-@अpoorva